बहुत चर्चे सुने थे कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अंशुमन खेर के, लेकिन मैं उनसे मिली नहीं थी। वह कश्मीर के थे और कई साल से दिल्ली में रह रहे थे। हार्ट केयर हॉस्पिटल में मेरी अभी नई नियुक्ति हुई थी और सीनियर डॉक्टरों से मिलने में थोड़ी हिचकिचाहट होती थी मुझे।
नर्स उनके सौम्य व्यवहार, काम करवाने के तरीके के बारे में अवश्य बात करती थीं। और यह भी कि जब मरीज का दिल जवाब दे देता था, तो वह अपने हाथों के स्पर्श से उसमें पुनः धड़कन भर देते थे। वह ऐसे डॉक्टर थे जिनकी विनम्रता की लोग जहां एक तरफ मिसाल देते थे, वहीं दूसरी ओर उनके हाथों में किसी अपने के पहुंच जाने पर उन्हें उसके बचने का विश्वास होता था। फिर भी वह हार्ट स्पेशलिस्ट दिल के बारे में बहुत कम जानता था!
अंशुमन जब तेजी से अपना सफेद कोट पहने कॉरीडोर से निकलते, तो हम जैसे जूनियर एक निगाह भर उन्हें देखने के लिए लालायित हो उठते। गोरा, कश्मीरी रंग, सुर्ख गुलाब जैसे गाल, लंबा कद और घुंघराले बाल। चेहरे पर फैली रहने वाली गंभीरता और काम के प्रति समर्पण की प्रखरता के बावजूद उनमें कुछ तो ऐसा था जिसे महसूस करने के लिए महिला डॉक्टर उनके साथ काम करने के अवसर तलाशती थीं। उनकी काबिलीयत और करिश्मे दोनों ने मुझ पर असर नहीं डाला, यह कहना एकदम गलत था। 35 वर्षीय डॉ. खेर अभी तक कुंआरे हैं, सोच मैं आश्चर्यचकित रह गई थी। तब मेरे मन को एक ख्याल गुदगुदा गया,‘हो सकता है, यह मेरे लिए ही कुंआरे बैठे हों।’
वह अपना अधिकांश समय अस्पताल में ही बिताते। मानो रुकने के लिए उनके पास समय नहीं है।
मेरी उनसे पहली मुलाकात तब हुई जब मि. शाह जिनका केस एक फिजीशियन होने के नाते मैं देख रही थी, का इलाज डॉ. खेर को करते देखा। मि. शाह को दो बार हार्ट अटैक आ चुका था और स्टेंट भी लग चुके थे। वह अब बिल्कुल फिट थे और केवल सांस की तकलीफ और पैरों में सूजन की शिकायत के कारण अस्पताल में भर्ती हुए थे। डॉ. खेर उनके साथ बैठे हुए कभी चिकन कोरमा तो कभी फिल्मों की बात कर रहे थे। मुझे एक बार फिर आश्चर्य ने घेर लिया था। क्या यह इस तरह की बातें भी करते हैं? मुझे उन्होंने देखा, कुछ देर उनकी आंखें मुझे पढ़ती रहीं। फिर वह कमरे से बाहर निकल गए। वह अपने मरीजों की कितनी परवाह करते हैं।
फिर मेरी मुलाकात हुई एक फंक्शन में जो अस्पताल के हॉल में ही आयोजित किया गया था। मेरा भाग्य कि हम दोनों साथ-साथ ही बैठे थे। केवल चिकित्सा, सेहत और बिगड़ती जीवनशैली तक ही हमारी बातें सीमित रहीं। मेरा उनके लिए कुछ महसूस करना हल्की बजती मदहोश करने वाली धुन जैसा था। धीमी-धीमी ताल पर थिरकते कदमों जैसा था। एक दिन मेरा हाथ उनसे छू गया, तो उन्होंने ऐसे उसे खींचा मानो मैं कोई नागिन हूं। तब तक मुझे पता चल चुका था कि वह किसी ब्रह्मचारी से कम नहीं हैं।
आज तक कोई लड़की उनके जीवन में नहीं आई। उनके माता-पिता अपनी रूढ़िगत सोच और परंपराओं का पालन करते हुए एक रुकावट की तरह खड़े हैं। काम को प्राथमिकता देकर प्यार को उन्होंने पीछे धकेल दिया कि बेकार कोशिश की जाए। उसके बाद तो मुझे जिद हो गई कि इन्हें उस बेरंग जिंदगी से बाहर निकाल कर ही रहूंगी, जिसमें केवल मरीज हैं, दवाइयों की गंध है और ऑपरेशन थियेटर की रुटीन लाइफ है।
छह महीने बीतते-बीतते मैं उनके गालों पर चुंबन अंकित करने लगी थी और वह अकेले में मुझे बांहों में भरने लगे थे। मेरे होंठों का स्पर्श उन्हें रोमांचित करने लगा था। वह अक्सर मेरे घर आने लगे थे, रुकने लगे थे। वे हमारे प्यार में डूबे दिन थे। तब मुझे लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद की कहानी अपनी लगने लगी थी।
‘‘लैला जैसा समझने लगी हो खुद को, उनकी प्रेम कहानी जैसा अंत न हो कहीं, प्रीति?’’ अंशुमन खेर, एक प्रसिद्ध हार्ट स्पेशलिस्ट ने डरते हुए कहा था। उनके दिल में धड़कन होनी शुरू हो गई है। मैं मुस्करा उठी थी और झट से उनके होंठ चूम लिए थे।
हवाओं में हमारा प्रेम लहराने लगा था तो अस्पताल में कैसे यह बात छिपती। हमें कैंडल लाइट डिनर पर जाना पसंद नहीं था, हमें समुद्रतट पर हाथ पर हाथ डाले घूमना पसंद न था, हम एक-दूसरे को उपहारों से नहीं लादते थे। न ही आई लव यू कहते रहते थे। हमें बस एक-दूसरे की आंखों में आंखें डालकर एक-दूसरे को महसूस करते रहना अच्छा लगता था। हमारे लिए प्यार उस रंग-बिरंगी तितली की तरह था, जो उन्मुक्त आकाश में पंख फैलाए उड़ती रहती है।
अंशुमन मुझसे प्यार करने लगे थे, लेकिन आशंकाओं से घिरे रहते थे। उनके परिवार में प्रेम करना, वह भी दूसरी संस्कृति की लड़की के साथ, जो उम्र में छोटी भी है, शर्मनाक बात थी।
‘‘आप अपने निर्णय खुद ले सकते हैं?’’
‘‘ले सकता हूं। पर पेरेंट्स का विरोध कर उनका दिल नहीं दुखाना चाहता।’’ कितना हारा हुआ महसूस कर रहे थे वह। ‘‘मैं चाहता हूं कि वे खुद मेरी भावनाओं को समझें और तुम्हें अपना लें। तब तक हम नहीं मिलेंगे। कुछ दिनों में वे वापस कश्मीर लौट जाएंगे, तब मैं तुमसे मिलने आऊंगा।’’
मैं चुपचाप चली गई थी। उनसे दूर ही नहीं, अस्पताल से भी। और उसके बाद हर पल बस इंतजार करती रही उनके आने का। पांच साल बीत चुके हैं। उनके बारे में खोज-खबर लेती हूं, पर जब तक वह खुद न आएं मैं कैसे मिलने जा सकती हूं। अपने माता-पिता के प्रति उनके सम्मान को मैं चोट नहीं पहुंचाना चाहती थी।
मैं वापस उनके शहर में थी किसी काम से। एक रेस्तरां से खाना पैक करवाकर बाहर निकल रही थी कि उनसे सामना हो गया। बारिश शुरू हो गई थी। उनके हाथ में छाता था। ‘‘यहां का चिकन कोरमा बहुत फेमस है,’’ यकायक मुझे देख सकपका गए थे या टीस उठी थी, वह बिना कोई भूमिका बांधे बोले।
‘‘कार में बैठें?’’ उनके घुंघराले बालों के लच्छों से कहीं-कहीं सफेद बाल झांक रहे थे। गाल पहले जैसे ही सुर्ख थे, बस चेहरे पर शिथिलता और उदासी की परतें फैल गई थीं। मेरा मन कर रहा था कि उन्हें बांहों में भर कर चूम लूं। मेरा प्यार सामने खड़ा था और मैं सकुचाई सी जाकर कार में बैठ गई। उन पर कितना अधिकार जमाती थी, कहां गया वह सारा अधिकार!
‘‘मुझसे गलती हुई है प्रीति। पिछले पांच सालों से पछतावे में जल रहा हूं। पर तुमसे कह न सका कि लौट आओ। पता भी नहीं था कि तुम वापस लौटना चाहोगी मेरी जिंदगी में। आखिर तुम इंतजार क्यों करतीं? खैर!…’’
‘‘मेरे इंतजार न करने की कोई वजह थी क्या? मैंने कभी नहीं चाहा कि हमारे प्यार का अंत लैला-मजनूं जैसा हो। जानते नहीं मैं कितनी जिद्दी हूं।’’ अंशुमन ने मेरा हाथ पकड़ लिया।
‘‘पर तुम्हारे पेरेंट्स? क्या वे मानेंगे?’’
‘‘वे नहीं रहे इस दुनिया में। मेरी यही कोशिश रही कि उनका दिल न दुखे, इसलिए तुमसे दूर हो गया था। माफ कर सकोगी?’’
‘‘हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. अंशुमन खेर, अब बस भी करें। मेरा दिल बहुत जोर-जोर से धड़क रहा है। कुछ और नहीं सुनना मुझे। मैं चाहती हूं आप मेरे दिल की धड़कनें सुनें आज सिर्फ।’’ मैं उनके सीने से लग गई।
E-इश्क के लिए अपनी कहानी इस आईडी पर भेजें: [email protected]
सब्जेक्ट लाइन में E-इश्क लिखना न भूलें