कोरोना वायरस: शताब्दियों से ऐसी ही जानलेवा बीमारियां करती हैं दुनिया को तबाह

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CoronaVirus For centuries, such deadly diseases have destroyed the world

पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस (COVID-19) जैसी महामारी की चपेट में है। डब्ल्यूएचओ और यूएन जैसी वैश्विक संस्थाएं इसे विश्वव्यापी खतरा बता चुकी हैं। यह कहना बिल्कुल सही है कि हम अब कोरोनोवायरस (COVID-19) की दशहत में अपना हर मिनट केवल दुआ करके निकाल रहे हैं। सरकारी जानकारी के मुताबिक भारत में 4 मार्च तक 28 मरीज कोरोना से पीड़ित पाए गए हैं। इनमें से केरल में शुरुआत में मिले तीन लोग ठीक भी हो चुके हैं। 17 लोगों का इटालियन ग्रुप है। इस ग्रुप में 1 भारतीय है, जो ड्राइवर है। बाकी आगरा और दूसरी जगहों के लोग है।

वायरस अभीतक 60 देशों में फैल गया है और दुनिया भर में हजारों लोगों को प्रभावित किया है। वायरस का चीन का हुबंई शहर है। जहां सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। लेकिन कोरोनोवायरस (COVID-19) पहली बीमारी का प्रकोप नहीं है जिसके कारण बड़े पैमाने पर मौतें हुई हैं। इतिहास में कई मौकों पर, प्रकोपों ​​ने दुनिया के कई हजारों लोगों को मार डाला है। कभी-कभी लाखों की भी जानें गई हैं।

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जब ऐसी घटनाएं सामने आती है तो भविष्य के घटनाक्रम और परिवर्तन को लेकर की कई भविष्यवाणियों की याद आती है। जिसमें दो नाम काफी चर्चित हैं। एक फ्रांस नास्त्रेदमस और बुल्गारिया के बाबावेन्गा। बाबावेन्गा की भविष्यवाणी की बात हम यहां करेंगे। क्योंकि वेन्गा ने 50 साल में करीब 100 भविष्यवाणियां कीं। इनमें से ज्यादातर सच साबित हुईं। इनकी कई भविष्यवाणियां क्लाइमेट और नेचुरल डिजास्टर से संबंधित थीं।

जब दुनिया इस वक्त कोरोना वायरस की चपेट में हैं तो ऐसे में वेन्गा कि गई भविष्यवाणी सच होती दिख रही है। ऐसे में इंसानी मन विश्वास करने के अलावा और कर भी क्या सकता है। जैसा कि बार-बार वैज्ञानिकों द्वारा भी बताया गया है कि धरती की तबाही खुद मानव के हाथों से लिखी है। जिसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है। कई वैज्ञानिक और हमारे धर्मग्रथों में लिखा गया है कि धरती अपना संतुलन बनाने के लिए खुद परिवर्तन करती रहती है। यानी भू के गर्भ में क्या-क्या छिपा है उससे समझ पाना हमारे बस की बात नहीं है।

अगर बाबावेन्गा की भविष्यवार्णियों पर गौर किया जाए तो इस दौरान पूरा विश्व कोरोना जैसी महामारी से लड़ रहा है। ऐसी महामारी जिसके लिए अभी तक हमारे पास कोई हथियार मौजूद नहीं बस लड़ते जाना है। ज्यादा नहीं पिछले 20 सालों की बात करें तो सबसे पहले फ्लू की विश्वव्यापी महामारी ने दुनिया को तबाह किया। साल 2009 में अमेरिका और मैक्सिको में एच1एन1 वायरस के संक्रमण के डेढ़ दो महीने बाद ही भारत में इस बीमारी ने दस्तक दी थी। इसके बाद यह घातक महामारी बन गई थी।

दूसरी खतरनाक महामारी डेंगू रही है। हालांकि यह 1970 के दशक से फैली थी लेकिन पिछले कुछ सालों में यह संक्रमण 128 देशों तक फैल चुका है और वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम पोर्टल की मानें तो हर साल गंभीर डेंगू के 5 लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। जब बात निकली है तो क्यों नहीं इतिहास के गर्भ में जाकर देखा जाए कि हम या हमारे पूर्वज अभीतक किस-किस की महामारियों से लड़ते आए हैं। जिनकी वजह से हजारों लाखों जानें गई हैं? इन महामारियों के बारे में जानने के लिए पहले हम 21वीं सदी की महामारियों के बारे में चर्चा करेंगे और फिर इतिहास के बारे में। साथ ही, ये भी देखेंगे कि भारत में कौन सी महामारियां कहर बनकर आई थी।

यहाँ कुछ ऐतिहासिक महामारियाँ हैं जिनके कारण दुनिया भर में लाखों लोगों की मृत्यु हुई।

1720 मार्सिले का प्लेग

बुबोनिक प्लेग का अंतिम महत्वपूर्ण यूरोपीय प्रकोप था। इसने फ्रांस के मार्सिले शहर में कुल 100,000 लोगों की हत्या की। यह संख्या उस वक्त दुनिया की पूरी जनसंख्या का 20% हुआ करती थी। खास तौर पर यह बीमारी फैली थी पर्शिया और इजिप्ट में। एक अच्छा खासा इंसान जो रात को सोने जाता वह इंसान इस बीमारी की वजह से सुबह तक मरा पाया जाता। इसका ख्वाब इतना था कि लोग किसी भी चीज को छूने तक को भी घबराते थे। भारत में उन्नीसवीं सदी के आखिरी सालों में यह घातक थी। इतिहास में प्लेग के कई बार जिक्र मिलते हैं यूरोप, अफ्रीका और एशिया में इसने साढ़े 7 से 20 करोड़ लोगों तक की जान ली थी, प्लेग को ताऊन, ब्लैक डेथ, पेस्ट आदि नाम भी दिए गए हैं। मुख्य रूप से यह चूहों और पीसू से फैलता है। प्लेग रोग कितना पुराना है इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि एफीरस के रूफुस ने, जो ट्रॉजन युग का चिकित्सक था, “प्लेग के ब्यूबों” का जिक्र किया है और लिखा है कि है। ईसा पूर्व युग में 41 महामारियों के अभिलेख मिलते हैं। ईसा के समय से सन् 1500 तक 109 बढ़ी महामारियाँ हुईं, जिनमें 14वीं शताब्दी की “ब्लैक डेथ” के नाम से जानी गई।

1820 द फर्स्ट कॉलरा (हैजा)

1820 में अस्तित्व में आई जानलेवा बीमारी सबसे पहले थाईलैंड, इंडोनेशिया और फिलीपींस को अपनी चपेट में लिया। अकेले जावा द्वीप पर, फैलने से 100,000 लोगों की मौत हो गई। 1910 और 1911 के बीच भारत में शुरू छठी कॉलेरा महामारी मध्य पूर्व, अफ्रीका और पूर्वी यूरोप व रूस तक फैली थी जिससे 8 लाख से ज़्यादा लोग मारे गए थे। हैजा विब्रियो कॉलेरा नाम के बैक्टीरिया से होता है। जब मानव शरीर के गंदे अवशेष पानी या खाने या फिर किसी दूसरे के हाथों तक पहुंचते हैं तो बीमारी फैलती है। इस बीमारी में दस्त और उल्टियां होती हैं जिससे मरीज शरीर का सारा पानी खो देते हैं। साफ पानी न मिलने पर मरीज की मौत घंटों के अंदर अंदर हो सकती है। कई सालों के शोध के बाद ये पता चला कि ये बीमारी सबसे पहले बांग्लादेश से शुरू हुई थी।

ऊपर कुछ खतरनाक महामारियों का जिक्र हुआ है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि भारत केवल इन बीमारियों से गुजरा है। डेंगू, एच1एन1 के साथ ही भारत में हेपेटाइटिस और एनसेफलाइटिस ये उन बीमारियों के नाम जिनसे भारत हर साल लड़ता है। 2015 में दुनिया में 13 लाख से ज़्यादा मौतें हेपेटाइटिस से हुई थी, हेपेटाइटिस B की बात करें तो हर साल 7 लाख से ज्यादा मौतें होती हैं। इसके अलावा भारत के लिए जीका वायरस, निपाह वायरस जैसी जानलेवा बीमारियां चिंता का विषय अभी तक बनी हुई हैं।

1920 स्पेनिश फ्लू

दुनिया के सबसे खतरनाक वायरस ने 1920 में तबाही मचाई थी, जिसने दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी को अपना शिकार बना लिया था। यह वायरस सबसे पहले यूरोप, यूनाइटेड स्टेट्स और एशिया के कुछ हिस्सों में फैला जिसने करीब 2 करोड़ से 5 करोड़ लोगों की जिंदगी खत्म कर दी थी। यह वायरस एच1एन1 फ्लू था, जो कि खांसी, छींकने के दौरान निकलने वाली ड्रॉपलेट्स के संपर्क में आने से फैलता है। इस वायरस ने सबसे ज्यादा स्पेन में तबाही मचाई थी, जिस वजह से इसे स्पेनिश फ्लू के नाम से जाना जाने लगा।

फ्लू का इतिहास

फ्लू का इतिहास अगर देखा जाए तो 1889 से पहले एच1 से मानवों में स्वाइन फ्लू का वायरस संक्रमित हुआ। लेकिन, इस वर्ष रूस में एच2 वायरस सामने आया और पूरी दुनिया में फैल गया। इससे 10 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। इसके उपरांत 1918 में स्पेनिश फ्लू से पांच करोड़ लोगों की मौत हुई और वैश्विक आबादी की एक-तिहाई आबादी इससे संक्रमित हुई। फिर 1931 में अमेरिका के इवोआ में सूअर से एच1एन1 का लक्षण सामने आया। 1957 में एच2एन2 वायरस से एशिया में फ्लू महामारी पैदा हुई।

इससे पूरी दुनिया में 10 से 15 लाख लोगों की मौत हुई। ग्यारह साल बाद 1968 में एच3एन3 वायरस से हांगकांग में महामारी फैली और पूरी दुनिया में लगभग दस लाख लोगों की मृत्यु हुई। सत्तर के दशक में एक बार फिर यह सक्रिय हुआ और 1976 में एच1एन1 वायरस सूअर से इंसानों में फैला। अमेरिका में अधिक प्रकोप देखने को मिला। बीसवीं सदी के अंत में 1998 में अमेरिका में फिर एच1एन1 सामने आया। वैक्सीन से इसे नियंत्रित करने की कोशिश की गयी, लेकिन सफलता नहीं मिली। इक्कीसवीं सदी के आरंभ में 2004-06 में एशियाई देशों में एच5एन1 वायरस का संक्रमण हुआ। 2009 में यह भारत आया इसकी भयावहता को देखकर 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एच1एन1 को वैश्विक महामारी घोषित करने का फैसला किया।

भारत में कब आया

11 मई 2009 को हैदराबाद के एयरपोर्ट पर एक यात्री की स्क्रीनिंग में एच1एन1 से पीड़ित होने की पुष्टि हुई। वह यात्री अमेरिका से हैदराबाद आया था। इसके बाद यह बीमारी महाराष्ट्र, अहमदाबाद, दिल्ली सहित देश के कई हिस्सों में फैल गई। वर्ष 2009 में दिल्ली में 149 लोगों की इससे मौत हो गई थी।

वर्ष 2010 तक स्वाइन फ्लू ने देश में तांडव मचाया। उस वर्ष देश भर में इससे पीड़ित 1763 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद वर्ष 2011 में इसका प्रकोप कम रहा। वर्ष 2013 में दिल्ली में 16 लोगों की स्वाइन फ्लू से मौत हुई थी। तब देश भर में करीब 700 लोग इससे पीड़ित हुए थे। वर्ष 2015 में जनवरी से अप्रैल के बीच दिल्ली में स्वाइन फ्लू के 4266 मामलों की पुष्टि हुई थी। इसमें से 12 लोगों की मौत हो गई थी। ये महामारी थमी नहीं अभी हाल ही में खबर थी कि दिल्ली के तीन जजों में स्वाइन फ्लू के लक्षण मिलें हैं।

2020 कोरोना

साल 1720, 1820 और 1920 में फैली महामारी के बाद साल 2020 में करोना वायरस दुनिया में तबाही मचाए हुए हैं। महामारी के सालों पर नजर दौड़ाए तो आप इसे संयोग समझेंगे या पैर्टन। विश्व में हर जानलेवा बीमारी 100 साल बाद ताड़व दिखाने धरती पर पहुंच रही है। दुनिया भर में कोरोना वायरस लोगों की जान ले रहा है। एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में अब तक कोरोनावायरस का 93 हजार से ज्यादा मामला सामने आ चुका है। जबकि 3,198 लोगों की मौत हो गई है। भारत में भी कोरोना वायरस ने दस्तक हो चुकी है। जिसमें से 25 लोगों को केस में कोरोना मिला है बाकी अन्य 50 लोगों की जांच चल रही है।

CoronaVirus For centuries, such deadly diseases have destroyed the world

73 देशों में पहुंचा कोरोना वायरस

अमेरिका-127 केस 9 मौत
ब्रिटेन-51 केस
फ्रांस-212 केस और 4 मौत
रूस– 3 मौत
चीन– 80270 केस और 2981 मौत
हॉन्गकॉन्ग– 100 केस 2 मौत
जापान– 1000 केस और 6 मौत
द.कोरिया– 5328 केस और 28 मौत
फिलीपींस– 3 केस
ऑस्ट्रेलिया– 39 केस, 1मौत
ईरान– 2336 केस और 77 मौत
मिस्र– 2 केस
अलजीरिया– 5 केस
ब्राजील– 2 केस
नाइजीरिया– 1 मौत
ताइवान– 42 केस
भारत- 28 केस
पाकिस्तान– 5 केस
इटली -2502 केस और 79 मौत

थाईलैंड में 25, सिंगापुर में 24, जर्मनी में 12, मलेशिया में 10, वियतनाम में 10, यूएई में 5, कनाडा में 4 केस बेल्जियम में 1, नेपाल में 1, श्रीलंका में 1, स्वीडेन में 1, स्पेन में 1 कंबोडिया में 1 और फिनलैंड में 1 केस सामने आए हैं।

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एचआईवी

1976 में पहली बार सामने आई इस बीमारी ने पूरी दुनिया में पैर पसारे और अब तक इस बीमारी ने साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा जानें ली हैं। पिछले एक दशक में आंकड़े या कुल संख्या के मामले में एड्स का संक्रमण फैलने की रफ्तार कम हुई है। दुनिया के कुल मरीजों की तुलना में भारत के मरीजों के आंकड़े बताते हैं कि चुनौतियां अभी कम नहीं हैं। 21 से 22 लाख के बीच कुल एड्स मरीज भारत में हैं लेकिन यूएनएड्स की 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक साल में करीब 88 हजार मरीज नए पाए गए। अनुमान ये भी है कि नए मरीजों की संख्या 1 लाख 20 हजार तक भी हो सकती है।

इस आंकड़े को आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि 2018 की इस रिपोर्ट के मुताबिक एक साल में 69 हजार मौतें एड्स संबंधी कारणों से हुईं। यानी जितनी मौतें हर साल एड्स से हो रही हैं, तकरीबन उतने ही नए मरीज भी जुड़ रहे हैं। इसी तरह, दुनिया के एड्स मरीजों की कुल संख्या की तकरीबन 10 फीसदी आबादी भारत में है। इंडेक्समंडी पोर्टल की मानें तो एड्स के सबसे ज्यादा मरीजों वाले देशों की सूची में दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया के बाद भारत तीसरे नंबर पर है।

अब अंत में यदि नास्‍त्रेदमस की भविष्यवाणियों पर गौर किया जाए तो मौसम में काफी बदलाव आएंगे। प्राकृतिक आपदाओं में इजाफा होगा साथ ही साथ बाढ़, तूफान, गर्मी और भूकंप ज्‍यादा होने लगेंगे। गर्मी कहर ढ़ाएगी। जंगल में आग लगेगी। भूमि में पानी सूख जाएगा, लेकिन समुद्री जल स्तर में बढ़ोतरी होगी। ग्लोबल वार्मिंग का असर तो पिछले साल से ही शुरू हो गया था। प्रत्येक मौसम अब आगे खिसक रहें हैं। इसके साथ ही बारिश में अब चारों ओर बाढ़ के नजारे देखने को मिलते हैं। भविष्यकर्ताओं के मुताबिक 2020 और न्यूटन के मुताबिक 2060 धरती का अंत होगा। हम किसी उल्कापिंड, धरती के विस्फोट या किसी ब्लैकहोल में फंस नहीं रहेंगे बल्कि मानव जाति का विनाश प्राकृतिक आपदा और जानलेवा महामारियों से होगा जिसकी शुरूआत होनी शुरू हो गई है। इस लेख का मकसद आपको डराना नहीं बल्कि समझाना है कि इन सबके अविष्कारक हम हैं और ये सब हमें खुद झेलना होगा।

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