मैं रायपुर की रहने वाली हूं। लगभग एक साल पहले मैं अपने शहर से मुंबई आई थी। मुझे फिल्म और टीवी इंडस्ट्री में काम करना था। रायपुर में छोटे-मोटे इवेंट्स में मॉडलिंग किया करती थी। मेरा फिगर अच्छा था जिस वजह से कई दफा जज मुझसे कहते थे कि तुम मुंबई क्यों नहीं जाती हो। धीरे-धीरे मेरे अंदर मुंबई जाने की कसक बढ़ने लगी। लोगों से हर दिन सुनती थी कि मुंबई की हवा में पैसा और नाम है। आखिरकार मैं परिवार को नाराज कर मुंबई चली ही आई।
यहां आने पर सबसे पहले मैंने उन लोगों को संपर्क किया जो फेसबुक के जरिये मुझे पहले से जानते थे। मुंबई आने से पहले सोशल मीडिया के जरिए ही गोरेगांव में एक घर देखा। जो शेयरिंग में था। वहां पहले से तीन लड़कियां रह रही थी। मैं भी उनके साथ रहने लगी। एक हॉल कमरे में मुझे जमीन पर एक गद्दा दे दिया गया। उसी हॉल के दूसरे छोर पर एक और लड़की का बिस्तर था। मैंने अपना एक बैग और पॉलीथीन से अपना कुछ सामान निकालकर एक अलमारी में सजा दिया। कमरे में मेरे गद्दे के आसपास की जगह ही मेरी अपनी थी।
अगले ही दिन से मैं अपनी जान पहचान के लोगों से मिलने जाने लगी। मीटिंग अक्सर अंधेरी या उसके आसपास ही हुआ करती थी। मीटिंग वाले लोग कोरियोग्राफर, कास्टिंग डायरेक्टर्स और कोऑर्डिनेटर्स थे।
हर दिन एक ही सवाल- बोल्ड कर लोगी, कॉम्प्रो कर लोगी?
मुंबई की जिस चमकती दुनिया के बारे में मैं सुना करती थी उसके स्याह पहलू से जब मेरा पहला वास्ता पड़ा तो कई दिन मैं बिस्तर से नहीं उठ सकी। मुझे मुंबई आए लगभग एक महीना हो चुका था। कहीं कोई काम नहीं मिल रहा था। हर दिन चेहरे पर लीपापोती कर तैयार होकर मीटिंग करने जाओ और खाली हाथ घर लौट आओ। ज्यादातर लोग तो फालतू में ही बुला लेते हैं, आंख सेकने के लिए और अनापशनाप बातें करने के लिए। उनके पास देने के लिए न कोई काम होता है न कोई कॉन्टैक्ट। करती भी क्या, हमारे जैसे फ्रेशर के पास इनके सिवा और कोई नेटवर्क भी तो नहीं होता है।
जब भी मीटिंग करने जाओ तो एक ही सवाल होता था, ‘बोल्ड कर लोगी? कॉम्प्रो कर लोगी?’ कॉम्प्रो से उनका मतलब काम के बदले किसी के साथ सोने से होता है।
वो साफ कहते– अगर यह सब भी नहीं करना है तो अपने आपको लॉन्च करने के लिए प्रोजेक्ट में बराबर पैसा लगाओ। मैं अमीर घर से नहीं थी कि अपने को लॉन्च करने के लिए पैसा लगा सकती। मैं ऐसी भी नहीं थी कि काम पाने के लिए बोल्ड या कॉम्प्रोमाइज कर लेती।
कुछ समझ नहीं आ रहा था। धीरे-धीरे दिमाग पर एक्टर बनने का फितूर उतरने लगा। डिप्रेशन होने लगा। थकान होने लगी। कभी-कभी समुद्र को देखते हुए मन करता कि समुद्र में अंदर तक चली जाऊं और डूब कर मर जाऊं। कभी मन करता कि घर वापस चली जाऊं, लेकिन नहीं जा सकती थी। मेरा समाज ऐसा था जहां इस बात का ढिंढोरा पिट चुका था कि मैं मुंबई एक्टर बनने गई हूं। मुझे लगा कि बिना कुछ किए ऐसे ही चली जाउंगी तो बहुत बेइज्जती होगी।
कोरियोग्राफर बोला– बोल्ड किए बिना काम नहीं चलेगा
लगभग दो महीने बाद मुझे मेरे एक परिचित कोरियोग्राफर ने ऑडिशन के लिए नालासोपारा अपने घर पर बुलाया। परिचित था इसलिए मैं बेफिक्र होकर चली भी गई। इससे पहले भी वो कई दफा मुझे एक रेस्त्रां में मिलता रहा था। मुझे अपने साथ यहां-वहां मीटिंग्स में भी ले जाता था जहां फिल्मों में काम और प्रिंट शूट की लंबी-लंबी बातें होती। मैं अंदर ही अंदर खुश हो गई कि चलो मुझे अब काम मिलना शुरू हो जाएगा।
मैं बहुत भरोसे पर नालासोपारा उसके घर चली गई। शाम छह बजे की बात है। उस कोरियोग्राफर ने मुझे समझाया कि देखो अब OTT का ही जमाना है और OTT पर सिर्फ बोल्ड ही चलता है। उसने बोल्ड के लिए इस तरह से मुझे फ्यूचर और इंडस्ट्री का गणित समझाया कि अब मुझे भी लगने लगा कि बोल्ड किए बिना काम नहीं ही बनने वाला।
उसने इस तरह से मेरे जहन के जाले साफ किए कि मुझे अपने साथ ही बोल्ड सीन करके दिखाने के लिए कहा। उसका कहना था कि वह देखना चाहता था कि मैं किस हद तक बोल्ड कर सकती हूं। उसके मुताबिक ही वह मुझे आगे किसी प्रोजेक्ट में भेजेगा। मैं थोड़ा अनकम्फर्टेबल महसूस करने लगी।
वह बोला अगर तुम मेरे साथ ही ऐसे हिचकिचाओगी तो वहां इतने सारे लोगों के सामने यह सब कैसे करोगी? इसके लिए उसने मुझे हॉटशॉट ऐप के कुछ वीडियो भी दिखाए। उसने फिर कहा- ऐसे करो ऐसे करो, तभी आगे बढ़ पाओगी। मेरे जहन का रिमोट कंट्रोल अब उसके हाथ में आ चुका था, लेकिन उसके बैड टच से जब मैंने समझ लिया कि इसका इरादा ठीक नहीं है तो मैं वहां से अपनी रूममेट की बीमारी का बहाना बनाकर निकल गई।
कई दिन तक रोती रही, खुद से घिन आती थी
मुंबई की चमकती दुनिया से यह मेरी पहली मुलाकात थी। इसके बाद छह महीने तक मैं ठीक से सो नहीं सकी थी। कई दिन तक बिस्तर पर लेटी रही। भूख नहीं लगी। अकेली रोती रही। कोई ऐसा मेरे पास नहीं था जिसे मैं कुछ बता सकती। करीब छह महीने तक मैं नॉर्मल नहीं हो सकी। मुझे कभी घिन आती तो कभी गुस्सा, कभी रोना आता तो कभी पत्थर-सी बैठी रहती। ऐसे ही चलता रहा।
मैं उलझे बालों में सिलवटें पड़ी चादर पर दीवार पर टांगे चढ़ाकर एक टक कमरे की छत को ताकती रहती थी। फिर एक दिन एक दोस्त के जरिए शॉर्ट फिल्म मिली जिसके लिए मुझे पहली दफा एक दिन के शूट के 2500 रुपए मिले।
सात महीने दर-दर भटकने के बाद, कोरियोग्राफर के हाथों ठगी जाने के बाद पहली दफा जब 2500 रुपए हाथ में आए तो मुट्ठी में पैसे भींच मैं फूट-फूट कर रोने लगी। मैं धीरे-धीरे मैं नॉर्मल होने लगी थी। मुझे कुछ-कुछ काम भी मिलने लगा। जिसमें वन-डे कैरेक्टर रोल हुआ करते थे। लेकिन ऐसा साफ-सुथरा काम तीन से चार महीनों में ही मिलता है।
हर दिन काम के लिए आने वाले फोन में सीधा कहा जाता है कि मैडम कॉम्प्रो वर्क आया है, करेंगी? जो लोग फोन पर ऐसा नहीं बोलते हैं वह एक दफा मीटिंग करने के बाद पूछते हैं कि आप कितनी खुले विचारों की हैं? क्या-क्या कर सकती हैं?
सोच यह थी कि दोस्ती में हमबिस्तरी अलाउड है
हाल ही की बात है एक क्रिएटिव डायरेक्टर ने मीटिंग के लिए मुझे बुलाया। उसने कहा कि उल्लू OTT के लिए एक वेब सीरीज है। पहले हम फोन पर बात करेंगे, फिर आपको वैसा-वैसा वीडियो पर करके दिखाना है। Come back..let’s meetup and enjoy…
उसने मुझे सोचने के लिए एक दिन वक्त दिया। मैंने काफी सोचा और फोन करके काम करने के लिए मना कर दिया। उसने मुझसे कहा कि समझ तो मैं उसी वक्त गया था कि आप नहीं कर पाएंगी, बेस्ट ऑफ लक मैडम, आप ऐसे ही धक्के खा-खा कर काम कीजिए। ऐसा सुनने के बाद मैं सुबक-सुबक कर चादर में मुंह देकर बहुत रोती थी।
इसी तरह एक एक्टर से मैं मिलने गई। उसने मुझसे एक विज्ञापन देने की बात कही। पहली मुलाकात में उसने पूछा कि इंट्रोवर्ट हो या ओपन माइंडेड हो? मैंने जवाब दिया कि कुछ मामलों में हूं और कुछ में नहीं हूं।
उसका ऑफर मैं समझ गई थी जिसे मैंने ठुकरा दिया। मैं वहां से सीधे अपने घर चली आई। अगले दिन फोन पर गुस्से में वह लाल-पीला होकर कहने लगा कि तुम आधी औरत हो, आ जाओ, पूरी हम बना देते हैं। मैं ऐसा सुन फिर से डिप्रेशन में चली गई कि आपके साथ सो जाओ तो पूरी औरत हैं सोने से मना कर दो तो आधी औरत हैं। इन लोगों का कहना रहता है कि हम दोस्त हैं, दोस्ती में यह सब चलता है।
अब खुद ही पूछ लेती हूं कि कॉम्प्रो वर्क है या क्लीन
हर दिन की नई कहानी सोच-सोच कर बरबस ही अकेले में मेरे आंसू नहीं रुकते थे। मुझे अब समझ आने लगा था कि कॉम्प्रो करना न करना मेरे हाथ में है लेकिन मैं ऐसे ऑफर से तो किसी को मना नहीं कर सकती। मुझे यह सब सुनने की आदत डालनी होगी। मैंने ठान लिया कि चाहे कुछ हो जाए कॉम्प्रो करके तो काम नहीं ही लूंगी।
अब एक साल के बाद मुझे इस तरह के ऑफर सुनने की आदत पड़ चुकी है। अब मैं सामने वाले के ऐसे ऑफर सुनकर कॉफी पीते हुए मुस्कुरा देती हूं। घर आकर उसके इस ऑफर को सूखी रेत की तरह झाड़ देती हूं। अब तो मैं ही आंखों में आंखे डालकर पूछ लेती हूं कि कॉम्प्रो वर्क है या क्लीन वर्क? लेकिन क्लीन वर्क न के बराबर मिलता है।
मुंबई में रहना, खाना, कपड़ा सब चाहिए। कपड़ा तो कम से कम अच्छा चाहिए ही और एक आर्टिस्ट के पास हर तरह के मौके के कपड़े और जूते-चप्पल होने चाहिए। ऑडिशन देने जाओ तो पांव के नाखून से लेकर सिर के बाल तक चेक किए जाते हैं।
बिकनी शूट के तो इतने ऑफर आते हैं कि बता नहीं सकते। खर्च चलाने और इंडस्ट्री में पांव धरने की जगह बनाने के लिए मैंने बिकनी शूट करने के लिए मन को मना लिया। लेकिन वहां भी धोखाधड़ी है। बिकनी शूट यानी की बिकनी में ही होना चाहिए, लेकिन वो तकरीबन न्यूड शूट ही होते हैं। शूट करवाने तक मैंने समझौता कर लिया है।
डांस बार के नाम पर सेक्स वर्क का ऑफर देते हैं
इसके अलावा अब बार खुल चुके हैं। डांस बार के लिए ऑफर आ रहे थे। मुझे लगा कि डांस चलो साफ सुथरा काम होगा, इसके जरिये थोड़ी पॉकेट मनी निकल जाया करेगी। इसलिए बार डांसर बन गई, लेकिन यहां भी लड़कियों को नोंचने वालों की कमी नहीं। बहुत सारे ऐसे एजेंट हैं जो सिर्फ नाचने के लिए लड़कियों का अरेंजमेंट करते हैं।
हम लोगों के नंबर सभी कास्टिंग वालों के पास होते हैं। मेरे एक जानकार ने मुझे मस्कट और दुबई जाकर होटल में डांस करने का ऑफर दिया। एक लाख रुपए महीने की सैलरी है और किसी कस्मटर को पसंद आ जाएं तो उसके साथ जाना होगा।
अगर वहां नहीं जाना है तो बेंगलुरु और मुंबई के बार के लिए भी ऑफर आ रहे हैं जहां बार मालिक और डांसर का फिफ्टी-फिफ्टी है। आफत यह है कि इसमें सेक्स वर्क भी शामिल है। मुझे कल ही किसी ने पूछा कि फाइव स्टार होटल में सेक्स वर्क का जॉब है, आप करेंगी? यानी अब सेक्स वर्क जॉब के टाइटिल के साथ ऑफर हो रहा है।
अहम बात यह है कि कोविड के बाद छोटे शहरों से भी प्राइवेट डांस प्रोग्राम के ऑफर आ रहे हैं, जहां पहले से बता दिया गया है कि दर्शक स्टेज पर चढ़कर कोई भी भद्दी हरकत कर सकते हैं। और सुनिए कुछ राज्यों में लोकल चुनाव आ रहे हैं। नेताओं की प्राइवेट पार्टीज में नाचने के लिए ऑफर किया जा रहा है। लड़कियां बताने के लिए भी मोटा कमीशन दिया जा रहा है।
मैं इस लाइन में आ तो गई हूं लेकिन कोई किनारा नहीं मिल रहा है। संघर्ष और मेहनत हो तो कर भी लें लेकिन जो मांगा जा रहा है वो मैं नहीं करना चाहती। ऐसे में कई दफा मेरे पास एक टाइम की रोटी के पैसे भी नहीं होते हैं।
कितने के साथ सोएंगे हम इसलिए कॉम्प्रो नहीं करना
क्लीन वर्क मांगने वाली लड़कियां इंडस्ट्री के ज्यादातर लोगों के लिए मजे लूटने वाला मुफ्त का माल है। मैं एक कास्टिंग वाले से काम मांग रही थी। वो मेरे पीछे पड़ गया कि एक ऐप है, हर दिन उस पर रात में लाइव आना है। एक और ऐप पर बिकनी में तस्वीरें भेजने के महीने के पैसे मिलेंगे यानी काम के अलावा तमाम तरह कामों के ऑफर आते हैं।
मैंने तय कर रखा है कि कॉम्प्रो वर्क नहीं करना है। मैंने यही सोचा कि यहां हर कोई नोचने के लिए बैठा है। आखिर कितनों के साथ सोएंगे, यहां इसका कोई अंत नहीं है। दलदल है जिसमें बस धंसते ही जाना है। मैं रात-रात भर सो नहीं पाती हूं और सोचती रहती हूं कि आखिर मुझे काम मिलेगा कैसे? किसके पास जाऊं?