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नेटफ्लिक्स के ब्रांड बनने की कहानी: मगर भारत में पॉपुलैरिटी कम होने से क्यों परेशान हुए मालिक

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Story of Netflix: सोचिए किसी खेल की शुरुआत आपने की है और अब उसी खेल में आपको पछाड़ा जा रहा हो। आप कैसा महसूस करेंगे? ठीक यही हालत अब भारत में नेटफ्लिक्स का भी होता जा रहा है। भारतीयों को ओटीटी प्लेटफॉर्म का चस्का लगाने वाला नेटफ्लिक्स अब अपने घटते यूजर्स और लगातार बढ़ रहे कॉम्पिटिटर से परेशान है। हाल ही में नेटफ्लिक्स कंपनी के को-फाउंडर रीड हैशटिंग ने कहा, ‘हमें जो चीज अभी सबसे ज्यादा परेशान कर रही है, वह यह है कि भारत में हमें सफलता क्यों नहीं मिल रही है?’

साफ है कि दुनिया के 195 देशों में पसंद की जाने वाली कंपनी नेटफ्लिक्स को भारत में मन-मुताबिक सफलता नहीं मिल पा रही है। कंपनी भारतीयों की पहली पसंद बनने के लिए तरह-तरह के जतन कर रही है। जिसके चलते हाल ही में कंपनी ने भारत में अपना सब्सक्रिप्शन प्राइस भी कम कर दिया है।

ऐसे में आज ब्रांड स्टोरी में दुनिया भर में 151 मिलियन सब्सक्राइबर वाली नेटफ्लिक्स कंपनी के शुरुआत से अब तक के पूरे किस्से को जानते हैं।

जिम करते समय मार्क रैंडॉल्फ के दिमाग में आया था आईडिया

एक दिन नेटफ्लिक्स कंपनी के को-सीईओ और को-फाउंडर रीड हैशटिंग अपने दोस्तों के साथ जिम कर रहे थे। यहां जिम करते वक्त वह आपस में बिजनेस को लेकर बात कर रहे थे। बातचीत में ही उनके दिमाग में एक ऐसा मूवी प्लेटफॉर्म बनाने का आईडिया आया। जहां लोग एक बार पैसा देकर सालाना सब्सक्रिप्शन लेने के बाद अपने पसंद की फिल्म साल भर देख पाएं। यह आईडिया मार्क रैंडॉल्फ के सभी दोस्तों को पसंद आया। इसके बाद ही नेटफ्लिक्स बनने की कहानी शुरू हुई।

मूवी रेंटल सर्विस से शुरू हुई थी नेटफ्लिक्स की कहानी

साल 1997 की बात है। मार्क रैंडॉल्फ और रीड हास्टिंग्स नाम के दो शख्स ने मिलकर एक डीवीडी दुकान शुरू की। उस समय फिल्म देखना इतना आसान नहीं था। लोगों को अपने पसंद की फिल्म देखने के लिए डीवीडी खरीदकर या किराए पर लाना होता था। समय की मांग को समझते हुए मार्क रैंडॉल्फ और रीड हास्टिंग्स ने मूवी रेंटल सर्विस बिजनेस शुरू करने का फैसला किया।

मांग बढ़ने पर मार्क रैंडॉल्फ और रीड हास्टिंग्स ने किया पहला प्रयोग

एक कहावत है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। नेटफ्लिक्स कंपनी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। कंपनी शुरू होने के ठीक एक साल बाद 1998 में डीवीडी मंगवाने वालों की मांग बढ़ गई। मांग बढ़ने पर मार्क रैंडॉल्फ और रीड हास्टिंग्स ने मिलकर एक वेबसाइट बनाने का फैसला किया। इसके बाद Netflix.com के नाम से एक वेबसाइट बनाई गई। अब वेबसाइट के जरिए लोग अपने पसंद की फिल्म की डीवीडी ऑर्डर करने लगे। इसके लिए 4 से 6 डॉलर लोगों को कंपनी को देना पड़ता था। इस तरह कंपनी का पहला प्रयोग सफल साबित हुआ।

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1999 में कुछ इस तरह बदला मार्केटिंग स्ट्रेटजी

वेबसाइट पर लोगों को ज्यादा से ज्यादा विजिट कराने के लिए मार्क रैंडॉल्फ और उनके दोस्त ने एक मार्केटिंग प्लान तैयार किया। इसका उद्धेश्य सब्सक्रिप्शन लेने वालों की संख्या बढ़ाना था। मार्क रैंडॉल्फ ने एक ऑफर देने का फैसला किया। इसके तहत सब्सक्राइब करने वालों को अनलिमिटेड डीवीडी दी जाने लगी। इन लोगों पर डीवीडी को लौटाने का दबाव भी नहीं होता था। यह फिल्म देखने के बाद चाहे जितने दिन में डीवीडी लौटाएं, उन्हें एक्स्ट्रा चार्ज नहीं देना होता था। इस प्लान को 1999 में लागू किया गया और इसके 3 साल बाद ही कंपनी की वेबसाइट पर सब्सक्राइबर्स की संख्या बढ़कर 6 लाख हो गई थी।

2004 तक नेटफ्लिक्स का सलाना रेवेन्यू बढ़कर 3.73 हजार करोड़ रुपए

2004 तक नेटफ्लिक्स का सलाना रेवेन्यू बढ़कर 3.73 हजार करोड़ रुपए हो गया था। यहां से नेटफ्लिक्स की सफलता की कहानी शुरू हुई, जिसके बाद कंपनी की पॉपुलैरिटी और सब्सक्राइबर्स की संख्या काफी तेजी से बढ़ी। 2005 तक दुनिया भर में करीब 50 लाख लोगों ने इसे सब्सक्राइब किया था।

स्ट्रीमिंग शुरू होते ही तेजी से बढ़ा नेटफ्लिक्स की लोकप्रियता का ग्राफ

2007 में पहली बार नेटफ्लिक्स ने अपने ऐप पर वीडियो स्ट्रीमिंग की शुरुआत की थी। ऐप पर वाच नाऊ का ऑप्शन भी था। अब लोग बिना किसी डीवीडी के सीधे अपने पसंद की फिल्म देख सकते थे। यह कंपनी की सफलता के लिए गेमचेंजर साबित हुआ। कंपनी ने फिर ब्लू रे, एक्सबॉक्स 360 के साथ समझौता किया। अब ये कंपनी अपना कंटेंट नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम कर सकती थी।

कंपनी ने एक गलती से खो दिए 6 लाख सब्सक्राइबर्स

2011 में कंपनी ने अपने डीवीडी रेंटल सर्विस और वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विस को अलग करने का फैसला किया। इसके बाद दोनों सुविधाओं के लिए दो अलग-अलग पैकेज तय किए गए। दोनों पैकेज साथ लेने के लिए अब यूजर्स को 15.98 डॉलर देना होता था जबकि एक सर्विस के लिए 7.99 डॉलर देना होता था। कंपनी के इस फैसले से देखते ही देखते 6 लाख पेड सब्सक्राइबर्स ने नेटफ्लिक्स को अनसब्सक्राइब कर दिया। इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए कंपनी ने सब्सक्रिप्शन फी कम कर दी लेकिन दोनों सर्विस को मर्ज नहीं किया।

भारत समेत 190 देशों में कंपनी की धमाकेदार एंट्री

2016 तक कंपनी का दायरा 60 देशों में था, लेकिन इस साल कंपनी ने भारत समेत 190 देशों में स्ट्रीमिंग सर्विस शुरू करने का फैसला किया। 21 भाषाओं में टीवी शो, फिल्म ओर वेब शो को लोग इस प्लेटफॉर्म पर देख सकते थे। 2017 में दुनिया भर में इसके पेड सब्सक्राइबर्स की संख्या 100 मिलियन हो गई थी। जनवरी 2022 में नेटफ्लिक्स 12.73 लाख करोड़ का OTT प्लेटफॉर्म बन गया है।

कोरोना काल में भी भारतीयों की पसंद बनने में पिछड़ा नेटफ्लिक्स

कोरोना काल ने जहां सिनेमा घरों के कॉन्सेप्ट पर सवाल खड़ा कर दिया। वहीं, इससे OTT प्लेटफॉर्म का महत्व और बढ़ गया। लेकिन, भारत में नेटफ्लिक्स इसका ज्यादा फायदा नहीं उठा सका। इसकी कई मुख्य वजहों में से एक यह थी कि नेटफ्लिक्स के साथ शुरू हुए OTT क्रेज से प्रभावित होकर कई और भारत बेस्ड कंपनी मार्केट में उतरे। जो भारतीयों की पसंद का कंटेंट लेकर आए। भारत में नेटफ्लिक्स से OTT की शुरूआत तो हुई, लेकिन उस समय इस पर बाहरी शो ज्यादा आते थे। जिससे भारतीय दर्शक इससे ज्यादा समय तक जुड़े नहीं रह सके। दूसरी बड़ी वजह इसका बाकी दूसरे प्लेटफॉर्म्स की तुलना में महंगा होना भी है।

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एक्सेंचर की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 74% यूजर्स मानते हैं कि तमाम ओटीटी प्लेटफॉर्म का सब्सक्रिप्शन प्राइस कंटेंट के लिहाज से काफी महंगा है। यही नहीं 46% लोगों ने कहा है कि 2022 में वह अपने मीडिया और मनोरंजन पर होने वाले खर्च को कम करेंगे। ऐसे में नेटफ्लिक्स की चुनौती और बढ़ गई है।

भारत में अपना दायरा बढ़ाने के लिए इसे दूसरी स्ट्रेटजी को फॉलो करने की जरूरत है। सिर्फ प्राइस कम होने से नहीं बल्कि कंटेंट को लेकर भी बदलाव लाने के बाद ही लोग इस ओटीटी प्लेटफॉर्म को पसंद करेंगे।

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